अनजान सी है मंजिल
अनजान ही डगर है
मंजिले अपनी खो गई
दर-दर भटक रहे है...!!
बीच में है साँस अटकी
कबर पे पैरो के निशा है
कहा ले जायेगी ये आंधी
ना साथ अब अपनों का कारवा है !!
कोई नही यहाँ,
मैं हू और बस मेरा जहा है
खुनी हसरतो से लड़ते-लड़ते
रूह भी हुई लहू-लुहान है...!!
हर पल आती-जाती साँसों का
ज्यूँ क़र्ज़ सा चढा है ,
मौत है देन-दार जिसकी
जिंदगी ने बोझ सब सहा है ...!!
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7 comments:
रख मजबूती से कदम, मंजिल चूमे पग.
हर पथ की लम्बाई, रहे नापते डग.
"हर पल आती-जाती साँसों का
ज्यूँ क़र्ज़ सा चढा है ,
मौत है देन-दार जिसकी
जिंदगी ने बोझ सब सहा है ...!!"
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।
आप मेरे ब्लाग पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
कहा ले जायेगी ये आंधी
ना साथ अब अपनों का कारवा है !!
सुन्दर भाव.... कुछ पाने की ललक को दर्शाती है.....
achchhi rachana hai
इतने सहज तरीके से कैसे बयां कर लेती हैं आप दिल की बातें, सोचकर हतप्रभ हो रही हूं। बधाई।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।
Achchi rachna hai. Shukriya
bahut sunder abhivykti hai bhavo kee......
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