Tuesday, March 31, 2009

कब रौशनी चाहि थी..

मैंने कब सूरज का महताब माँगा था.
मैंने कब मिल कर उनसे, औरो की मुस्कुराह्ते छीनी थी..
छिटके तारों की रौशनी भी मिल जाती तो सुकून होता मुझे..
गम इस बात का है कि दुनिया ने मुझे तो जीने दिया..
सुख चैनं, होठो की हँसी भी छीन ली महबूब की मेरे ...!!

चीखे..

दर्द की चीखे सुन के
मेरी रूह रातो में रोती है..
होठो में भीच लेती हू आहों को..
मगर ये कमबख्त आँखे सब कहती है..!!



ज़माने के गम..

ज़माने भर के गम मेरी तकदीर में सिमट आए है..
ना आहे भरते बनता है..न अश्क बहते बनता है..
न तकदीर पे रोते बनता हा..न लकीरे जलाते बनता है..
मौत भी रूह को सुकून दे पायेगी क्या???
अब तो इस बात पे भी न यकीन होते बनता है..!!

Monday, March 16, 2009

इंतज़ार ...

शिद्दत से उन्हें यू याद करते है
हर आहट पे उन्ही के पैगाम की
चाहत करते है ...
ये कैसी दासता है जिसमे
स्याह शब् के बाद
सुबह का महताब नही है... !
मेरी चाहत की पाकीज़गी में
क्या कमी थी जो वक्त ने
तकदीर को इतनी
बेचारगी दी है॥