अनजान सी है मंजिल
अनजान ही डगर है
मंजिले अपनी खो गई
दर-दर भटक रहे है...!!
बीच में है साँस अटकी
कबर पे पैरो के निशा है
कहा ले जायेगी ये आंधी
ना साथ अब अपनों का कारवा है !!
कोई नही यहाँ,
मैं हू और बस मेरा जहा है
खुनी हसरतो से लड़ते-लड़ते
रूह भी हुई लहू-लुहान है...!!
हर पल आती-जाती साँसों का
ज्यूँ क़र्ज़ सा चढा है ,
मौत है देन-दार जिसकी
जिंदगी ने बोझ सब सहा है ...!!
Friday, April 24, 2009
Tuesday, March 31, 2009
कब रौशनी चाहि थी..
मैंने कब सूरज का महताब माँगा था.
मैंने कब मिल कर उनसे, औरो की मुस्कुराह्ते छीनी थी..
छिटके तारों की रौशनी भी मिल जाती तो सुकून होता मुझे..
गम इस बात का है कि दुनिया ने मुझे तो जीने न दिया..
सुख चैनं, होठो की हँसी भी छीन ली महबूब की मेरे ...!!
मैंने कब मिल कर उनसे, औरो की मुस्कुराह्ते छीनी थी..
छिटके तारों की रौशनी भी मिल जाती तो सुकून होता मुझे..
गम इस बात का है कि दुनिया ने मुझे तो जीने न दिया..
सुख चैनं, होठो की हँसी भी छीन ली महबूब की मेरे ...!!
चीखे..
दर्द की चीखे सुन के
मेरी रूह रातो में रोती है..
होठो में भीच लेती हू आहों को..
मगर ये कमबख्त आँखे सब कहती है..!!
मेरी रूह रातो में रोती है..
होठो में भीच लेती हू आहों को..
मगर ये कमबख्त आँखे सब कहती है..!!
ज़माने के गम..
ज़माने भर के गम मेरी तकदीर में सिमट आए है..
ना आहे भरते बनता है..न अश्क बहते बनता है..
न तकदीर पे रोते बनता हा..न लकीरे जलाते बनता है..
मौत भी रूह को सुकून दे पायेगी क्या???
अब तो इस बात पे भी न यकीन होते बनता है..!!
ना आहे भरते बनता है..न अश्क बहते बनता है..
न तकदीर पे रोते बनता हा..न लकीरे जलाते बनता है..
मौत भी रूह को सुकून दे पायेगी क्या???
अब तो इस बात पे भी न यकीन होते बनता है..!!
Monday, March 16, 2009
इंतज़ार ...
शिद्दत से उन्हें यू याद करते है
हर आहट पे उन्ही के पैगाम की
चाहत करते है ...
ये कैसी दासता है जिसमे
स्याह शब् के बाद
सुबह का महताब नही है... !
मेरी चाहत की पाकीज़गी में
क्या कमी थी जो वक्त ने
तकदीर को इतनी
बेचारगी दी है॥
हर आहट पे उन्ही के पैगाम की
चाहत करते है ...
ये कैसी दासता है जिसमे
स्याह शब् के बाद
सुबह का महताब नही है... !
मेरी चाहत की पाकीज़गी में
क्या कमी थी जो वक्त ने
तकदीर को इतनी
बेचारगी दी है॥
Thursday, January 8, 2009
उनकी रुसवाई
उन्होंने छोड़ दिया है हमें...
मोहोबत में रुसवा कर के...
अब नही देखते है हमें..
मुड़-मुड़ के वो प्यार से..
ना पूछते है हाल अपना वो जाने-जाना
हम भी खामोश जीते है आहें भर भर के..
जिंदगी बीती जाती है इस कदर..
मुर्दा हो मानो जिस्म..
धड़कन चलती हे रुक-रुक के..
मोहोबत में रुसवा कर के...
अब नही देखते है हमें..
मुड़-मुड़ के वो प्यार से..
ना पूछते है हाल अपना वो जाने-जाना
हम भी खामोश जीते है आहें भर भर के..
जिंदगी बीती जाती है इस कदर..
मुर्दा हो मानो जिस्म..
धड़कन चलती हे रुक-रुक के..
Sunday, December 28, 2008
तेरी मुहोब्बत
तेरी मुहोब्बत से ये जिंदगी रंगीन हो जाती है॥
आँखों में खुशी रुखसारों पे नूर बढ़ा जाती है
मैं किस कदर सराहू तेरी नजदीकियों को
कि ये मुझ नाचीज़ को जीने कि ललक दे जाती है !!
आँखों में खुशी रुखसारों पे नूर बढ़ा जाती है
मैं किस कदर सराहू तेरी नजदीकियों को
कि ये मुझ नाचीज़ को जीने कि ललक दे जाती है !!
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