Tuesday, March 31, 2009

ज़माने के गम..

ज़माने भर के गम मेरी तकदीर में सिमट आए है..
ना आहे भरते बनता है..न अश्क बहते बनता है..
न तकदीर पे रोते बनता हा..न लकीरे जलाते बनता है..
मौत भी रूह को सुकून दे पायेगी क्या???
अब तो इस बात पे भी न यकीन होते बनता है..!!

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