Thursday, January 8, 2009

उनकी रुसवाई

उन्होंने छोड़ दिया है हमें...
मोहोबत में रुसवा कर के...
अब नही देखते है हमें..
मुड़-मुड़ के वो प्यार से..
ना पूछते है हाल अपना वो जाने-जाना
हम भी खामोश जीते है आहें भर भर के..

जिंदगी बीती जाती है इस कदर..
मुर्दा हो मानो जिस्म..
धड़कन चलती हे रुक-रुक के..

3 comments:

Anonymous said...

मुर्दा हो मानो जिस्म..
धड़कन चलती हे रुक-रुक के..

bahut achchha,



-------------------------"VISHAL"

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर रचना

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

---मेरा पृष्ठ
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

daanish said...

udaasi ke tanhaa lamhoN se
guftu karvaate hue alfaaz...
pataa nahi kya kahooN, be-lafz hooN
---MUFLIS---