Tuesday, October 21, 2008

मेरी तन्हाईया..

तन्हाइयो के सैलाब उफनते रहते है..
गम-ऐ-गर्दिश में हम दफ़न रहते है..
जब जब दुखो की लहरें थपेरे देती है..
तन्हाईया सिमट कर मुझे कस के पकड़ लेती है..!!

तन्हाईया अब मेरी हम सफर हो गई है..
सब साथ छोड़ चुके है..
अब ये कब्र तक साथ हो चली है॥

तन्हाईया आज न सिम्टेंगी हम जानते है..
जान भी तो नहीं लेती, कमबख्त बदकिस्मती है..

तन्हाई अब मेरी पहचान हो गई है..
तन्हाई अब मेरी जुबा.न हो गई है ..
इस जनम में तो साथ ना छोडेगी ये, लगता है..
कब्र में भी तन्हाई हम-बिस्तर हो चली है ..!!

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