Wednesday, October 15, 2008

जिंदगी और मौत...

जब तक जिंदगी को चाहा रोते रहे..बस रोते ही रहे..
मौत को गले लगा हम आज हस दिए..अब हम चल दिए..!!

जिंदगी ने धोके दिए फ़िर भी इस पर जा.न निसार करते है..
मौत तो वफ़ा निभाती है फ़िर भी इसकी बाहों से दुरी रखते है॥

जिंदगी ने तो तडफा - तडफा के
ऐ मौत तेरा रास्ता दिखा दिया
अब तू भी तडफा रही है ऐ मौत
आज अपनाने से मुझे...!!

जिंदगी के काँटों को नोच कर नई राहे बनानी हें..
मौत कही और मुड़ न जाए...फूलो से राह सजानी हे....!!

मौत को करीब से कई बार देखा है दोस्तों..
जिंदगी मगर आज तक जिंदा न दिखी..!!

मौत इंतजार मे जुल्फों मे खिजाब लगाने के दिन गए है ..
सूख कर कांटा हो गई पिंज़र, कबर मे पैर लटकाने के दिन गए है ..!!
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आज मौत का सामान आया है..
हिसाब तो लगा लेने दो जिंदगी के दर्द का..
अब सकूं से सो जाने का वक्त आया है..
रुखसारों पे रंग देखने का
अपनों-परयो का वक्त आया है..!!


मौत के आगोश में जाना चाहती हु..
मगर बेवफा हे वो भी ..कब अपनी बाहों मे लेती है!!

खुशियों के इंतजार मे तमाम कर चले है जिंदगी
देखते है के मौत भी सकू.न लाती है कि नही..!!

जिंदगी हर पल रुलाती रही..
मौत से और दोस्ती बनती रही.
जिंदगी से जब मोह त्याग लिया..
मौत ने भी मझदार मे छोड़ दिया..

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